भगवान् के साथ जो तुम्हारा सम्बन्ध है उसमें तुम्हारा ध्यान इस बात पर नहीं होना चाहिये कि भगवान् तुम्हारी व्यक्तिगत कामनाओं को पूरा करें, ध्यान इस बात पर होना चाहिये कि तुम्हें इन सब चीजों से बाहर खींच लाया जाये और तुम्हारी उच्चतम आध्यात्मिक सम्भावनाओं में ऊपर उठाया जाये, जिससे तुम अपने अन्दर, और उसके फलस्वरूप बाहरी सत्ता में भी, मां के साथ युक्त हो सको। यह काम तुम्हारी प्राणगत वासनाओं को तृप्त करके नहीं किया जा सकता-उससे तो तुम्हारी वासनाएं और बढ़ जायेंगी और तुम साधारण प्रकृति के अज्ञान और उसकी अशान्त अस्तव्यस्तता के हाथों में जा पड़ोगे। यह काम तो केवल तुम्हारे आन्तरिक विश्वास और समर्पण के द्वारा तथा तुम्हारे अन्दर काम करने वाली और तुम्हारी प्राण-प्रकृति को परिवर्तित करने वाली मां की शान्ति और शक्ति के दबाव के द्वारा ही हो सकता है। जब तुम इसे भूल जाते हो तभी पथभ्रष्ट होते और कष्ट भोगते हो; जब तुम इसे याद रखते हो तब आगे बढ़ते हो और कठिनाइयां धीरे-धीरे हटती जाती हैं।
संदर्भ : माताजी के विषय में
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