जो विफलता और अपूर्णता की निंदा करता है वह भगवान की निंदा कर रहा है; वह अपनी ही आत्मा को सीमाबद्ध करता और अपनी ही अंतदृष्टि को धोखा देता है। निंदा न करो, पर ‘प्रकृति’ का अवलोकन करो, अपने भाइयों की सहायता तथा उन्हें रोगमुक्त करो और अपनी सहानुभूति द्वारा उनकी क्षमताओं और साहस को दृढ़ बनाओ।

संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड-१७)

शेयर कीजिये

नए आलेख

आध्यात्मिक जीवन की तैयारी

"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…

% दिन पहले

उदार विचार

मैंने अभी कहा था कि हम अपने बारे में बड़े उदार विचार रखते हैं और…

% दिन पहले

शुद्धि मुक्ति की शर्त है

शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…

% दिन पहले

श्रीअरविंद का प्रकाश

मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…

% दिन पहले

भक्तिमार्ग का प्रथम पग

...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…

% दिन पहले

क्या होगा

एक परम चेतना है जो अभिव्यक्ति पर शासन करती हैं। निश्चय ही उसकी बुद्धि हमारी…

% दिन पहले