यदि तुम उस चेतना में रहते हो जो मनद्वारा कार्य करती है, चाहे वह उच्चतम मन ही क्यों न हो, तो तुम्हें यह बोध होता है कि कारण और परिणाम पूर्णतया नियत है और तुम महसूस करते हो कि वस्तुएं जैसी हैं वैसी वे इसीलिये हैं क्योंकि वे उससे भिन्न हो ही नहीं सकतीं।
जब तुम मानसिक चेतना से पूरी तरह बाहर निकल आते हो और वस्तुओं-संबंधी उच्चतर बोध में जिसे तुम आध्यात्मिक या दिव्य कह सकते हो प्रवेश पा जाते हो, केवल तभी तुम अपने-आपको एकाएक पूर्ण स्वतंत्रता की अवस्था में पाते हो जहां सब कुछ संभव है।
सन्दर्भ : प्रश्न और उत्तर (१९५७-१९५८)
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…