श्रीअरविंद के योग के साधक को भूतकाल और वर्तमान में पूजे जाने वाले भगवान के विभिन्न रूपों के पुजारियों के प्रति कैसी वृत्ति रखनी चाहिये ? अगर वह उनकी पूजा जारी रखे तो क्या वह उसकी प्रगति में बाधक होगी और उसके लक्ष्य की सिद्धि को रोकेगी ?
सभी पुजारियों की ओर शुभचिंतायुक्त सद्भावना।
सभी धर्मों के प्रति एक प्रबुद्ध उदासीनता।
रही बात ‘अधिमानस’ सत्ताओं के साथ संबंध की, अगर यह सम्बंध पहले से है तो हर एक का अपना अलग समाधान होगा।
संदर्भ : शिक्षा के ऊपर
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…