ठीक करना और मिटाना, दोनों सम्भव हैं लेकिन दोनों हालतों में, यद्यपि अलग-अलग मात्रा में, स्वभाव और चरित्र के रूपान्तर की जरूरत होती है । अपने कर्म के परिणामों को बदलने की आशा करने से पहले जो चीज गलत तरह से की गयी है उसे पहले अपने अन्दर बदलना चाहिये ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग – ३)
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…