ऐसा लगता है कि कुछ लोगों ने ऐसा समझा कि मैं यह घोषणा कर रही हूँ कि अतिमानस अभी दस लाख वर्षों तक नहीं आयेगा! मैं इस
धारणा का संशोधन करना चाहती हूँ।
श्रीअरविन्द ने कहा है कि जैसे-जैसे विकास चेतना की क्रम-परम्परा में ऊपर उठता है, उसकी गति अधिकाधिक तेज़ होती जाती है, और जब
‘आत्मा’ या ‘अतिमानस’ इसमें हस्तक्षेप करता है, यह कहीं अधिक तेजी से आगे बढ़ सकता है। अतएव हम आशा कर सकते हैं कि कुछ शताब्दियों
के अन्दर पहली अतिमानसिक जाति प्रकट हो जायेगी।
परन्तु यह भी कुछ लोगों के लिए बिलकुल घबरा देने वाली बात है, क्योंकि वे समझते हैं कि यह बात श्रीअरविन्द जिस बात की सर्वदा प्रतिज्ञा
करते रहे हैं उसका खण्डन करती है : वे कहते रहे हैं कि अतिमानसिक रूपान्तर के सम्भव होने का समय आ गया है…। परन्तु हमें अतिमानसिक
रूपान्तर को नवीन जाति के प्रादुर्भाव के साथ मिला नहीं देना चाहिये।
श्रीअरविन्द ने जिस बात का वचन दिया था और जिस बात में स्वभावतः हमलोगों को, जो इस समय यहाँ हैं, दिलचस्पी है, वह यह है कि वह समय आ गया है जब मानवजाति के कुछ श्रेष्ठ व्यक्ति, जो आध्यात्मीकरण के लिए आवश्यक शर्तों को पूरा करेंगे, अतिमानसिक ‘शक्ति’, ‘चेतना’ और ‘ज्योति’ के द्वारा अपने शरीर का रूपान्तर करने में समर्थ होंगे, ताकि वे पशु-मानव न रहें बल्कि अतिमानव बन जायें।
यह वचन श्रीअरविन्द ने दिया है और इसे उन्होंने अपने इस अनुभूत ज्ञान पर प्रस्थापित किया था कि अतिमानसिक ‘शक्ति’ पृथ्वी पर अभिव्यक्त
होने को है। यथार्थ में वह उनके अन्दर बहुत पहले ही अवतरित हो गयी थी, उन्हें इसका पता था और वे जानते थे कि उसके परिणाम क्या हुए थे।
और अब जब कि वह विश्वव्यापी रूप में अभिव्यक्त हो गयी है, मैं कह सकती हूँ कि सामान्यतया, रूपान्तर की सम्भावना की निश्चितता स्वभावतः और भी अधिक बढ़ गयी है। अब कोई सन्देह नहीं कि जो लोग शर्तों को पूरा करेंगे अथवा जो अब पूरा कर रहे हैं, वे इस रूपान्तर के पथ पर हैं।
सन्दर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५६
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