दर्शन संदेश १५ अगस्त २०१८ (२/४)
यदि तू यह समझता हो कि पराजय ही तेरा अंत है तो फिर, यदि तू अधिक बलवान हो तो भी, युद्ध करने मत जा। क्योंकि भाग्य को कोई मनुष्य खरीदता नहीं और न शक्ति उस व्यक्ति से बंधी होती है जिसके पास वह होती है। परंतु पराजय ही अंत नहीं है, वह तो महज एक दरवाजा अथवा एक आरंभ है।
संदर्भ : विचारमाला और सूत्रावली
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…