अधिकतर मनुष्य — केवल अशिक्षित ही नहीं बल्कि पढ़े-लिखे भी —अपने सिरमें बहुत ही विरोधी, बहुत ही प्रतिकूल विचार लिये रहते हैं और उन्हें इन विरोधों का पता तक नहीं होता। मैंने इस प्रकारके बहुतसे उदाहरण देखे हैं जिनमें लोगों ने ऐसे विचारों को पोस रखा था जो परस्पर विरोधी थे। यहां तक कि राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक आदि मानव बुद्धि के सभी तथाकथित उच्चतर क्षेत्रों के बारेमें उनकी अपनी सम्मतियां थीं, और एक ही विषय पर एकदम विरोधी सम्मतियां थीं पर उन्हें इस बातका पता तक न था। यदि तुम अपना निरीक्षण करो तो देखोगे कि तुम्हारे ऐसे बहुत से विचार है जिन्हें बीच के विचारों की शृंखला से जोड़ने की जरूरत है ताकि वे भद्दे रूप में एक साथ न पड़े रहें। और ये मध्यवर्ती विचार सामान्य विचारों को पर्याप्त रूप में विस्तृत करनेसे बनते हैं।
सन्दर्भ :प्रश्न और उत्तर (१९५७-१९५८)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…