निर्णय करने के लिए मैंने एक तरकीब खोज निकाली है । मैं मामले को स्थगित कर देता हूं और आन्तरिक रूप से उसे आपके आगे रखता हूं। समाधान अपने-आप आ जाता है ।
वास्तव में यही सच्चा तरीका है और सब जगह इसी का उपयोग करना चाहिये ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग -३)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…