तुम श्रीअरविन्द पर अपनी श्रद्धा अमुक शब्दों में अभिव्यक्त करते हो और तुम्हारे लिए ये ही इस श्रद्धा की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति हैं। यह बिलकुल ठीक है। लेकिन अगर तुम ऐसा मानते हो कि श्रीअरविन्द क्या हैं, इसे अभिव्यक्त करने के लिए केवल ये ही शब्द ठीक हैं तो तुम मतान्ध बन जाते हो और एक धर्म शुरू करने के लिए तैयार होते हो।

सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)

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