श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

धर्म : बाधक या सहायता

धर्म के कारण निकृष्टतम और उत्कृष्टतम दोनों प्रकार की प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिला है। एक ओर यदि इसके नाम पर अत्यन्त भयानक युद्ध लड़े गये हैं और भयंकर अत्याचार किये गये हैं, तो दूसरी ओर इसने धर्म के कार्य के निमित्त परम शौर्य और आत्म-बलिदान के भावों को भी जगाया है। यदि तुम धर्म के बाह्य रूप के गुलाम हो जाओ तो यह बाधा है, एक बन्धन है; किन्तु यदि तुम इसके अन्दर के सार का उपयोग करना जानते हो, तो यह आध्यात्मिक भूमिका में कूद सकने के लिए सहायता
देने वाला तख्ता बन सकता है।

संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९२९-१९३१

शेयर कीजिये

नए आलेख

भगवान के दो रूप

... हमारे कहने का यह अभिप्राय है कि संग्राम और विनाश ही जीवन के अथ…

% दिन पहले

भगवान की बातें

जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…

% दिन पहले

शांति के साथ

हमारा मार्ग बहुत लम्बा है और यह अनिवार्य है कि अपने-आपसे पग-पग पर यह पूछे…

% दिन पहले

यथार्थ साधन

भौतिक जगत में, हमें जो स्थान पाना है उसके अनुसार हमारे जीवन और कार्य के…

% दिन पहले

कौन योग्य, कौन अयोग्य

‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…

% दिन पहले

सच्चा आराम

सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…

% दिन पहले