धर्म के कारण निकृष्टतम और उत्कृष्टतम दोनों प्रकार की प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिला है। एक ओर यदि इसके नाम पर अत्यन्त भयानक युद्ध लड़े गये हैं और भयंकर अत्याचार किये गये हैं, तो दूसरी ओर इसने धर्म के कार्य के निमित्त परम शौर्य और आत्म-बलिदान के भावों को भी जगाया है। यदि तुम धर्म के बाह्य रूप के गुलाम हो जाओ तो यह बाधा है, एक बन्धन है; किन्तु यदि तुम इसके अन्दर के सार का उपयोग करना जानते हो, तो यह आध्यात्मिक भूमिका में कूद सकने के लिए सहायता
देने वाला तख्ता बन सकता है।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९२९-१९३१
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…