देशभक्ति की भावनाएँ हमारे योग की विरोधी बिलकुल नहीं हैं, बल्कि अपनी मातृभूमि की शक्ति तथा अखंडता के लिए संकल्प करना एकदम न्यायसंगत भावना है। यह संकल्प करना कि वह प्रगति करें और अपनी पूर्ण स्वतंत्रता में अपनी सत्ता के सत्य को अधिकाधिक अभिव्यक्त करे, एक ललित तथा उदात्त भावना है जो हमारे योग में हानिकारक नहीं हो सकती ।
किंतु हमें उत्तेजित नहीं होना चाहिये। हमें कार्यवाही में असमय कूद नहीं पड़ना चाहिये। हमें सत्य की विजय के लिए प्रार्थना, अभीप्सा तथा संकल्प करना चाहिये तथा साथ-साथ अपना दैनिक कर्तव्य करते हुए कार्यवाही करने के लिए निर्भूल संकेत मिलने तक शांत होकर प्रतीक्षा करनी चाहिये।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
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अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…