… दिव्य शक्ति न केवल प्रेरणा देती है और पथ प्रदर्शन करती है, बल्कि तुम्हारें सभी कर्मों का सूत्रपात करती और उन्हें सम्पन्न भी करती हैं; तुम्हारें सभी कर्मों का स्त्रोत वही हैं, तुम्हारी सभी शक्तियाँ उसी की हैं, तुम्हारा मन, प्राण और शरीर उसी की क्रिया के सचेतन और प्रसन्न यंत्र हैं, उसी की क्रीडा के साधन हैं, भौतिक जगत में उसी की अभिव्यक्ति के सांचें हैं।
संदर्भ : माताजी के विषय में
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…