… दिव्य शक्ति न केवल प्रेरणा देती है और पथ प्रदर्शन करती है, बल्कि तुम्हारें सभी कर्मों का सूत्रपात करती और उन्हें सम्पन्न भी करती हैं; तुम्हारें सभी कर्मों का स्त्रोत वही हैं, तुम्हारी सभी शक्तियाँ उसी की हैं,  तुम्हारा मन, प्राण और शरीर उसी की क्रिया के सचेतन और प्रसन्न यंत्र हैं, उसी की क्रीडा के साधन हैं, भौतिक जगत में उसी की अभिव्यक्ति के सांचें हैं।

संदर्भ : माताजी के विषय में 

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