जीवन की भांति योग में भी वही मनुष्य जो प्रत्येक पराजय एवं मोहभंग के सामने तथा समस्त प्रतिरोधपूर्ण, विरोधी ओर निषेधकारी घटनाओं एवं शक्तियों के समक्ष बिना थके-हारे अन्त तक डटा रहता है वही अन्त में विजयी होता है और देखता है कि उसको श्रद्धा सच्ची सिद्ध हुई है क्योंकि मनुष्य में रहने वाली आत्मा और दिव्य शक्ति के लिये कुछ भी असम्भव नहीं है।
-श्रीअरविंद
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…