यह बहुधा घटित होता है कि दर्शन-दिवस के समीप आते ही विरोधी शक्तियां एकजुट हो जाती हैं और व्यक्तिगत रूप में या व्यापक तौर पर आक्रमण करती हैं ताकि व्यक्ति वैयक्तिक रूप में जो ग्रहण कर सकता है उसमें, और व्यापक रूप से जो उतारा जा रहा है उसमें भी रोड़े अटका कर अवतरण में बाधक बन जायें। साथ ही, बहुधा, दर्शन-दिवस के बाद चाहती या उसे और आगे बढ़ने से रोकना चाहती हैं। लेकिन जहां तक व्यक्ति का सवाल है, इस प्रहार से गुजरने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि अगर व्यक्ति अपनी प्रकृति में सचेतन हो तो वह प्रतिक्रिया करके उसे दूर फेंक सकता है। या अगर वह विरोधी-शक्ति तब भी अपना जोर लगाये तो व्यक्ति अपनी इच्छा-शक्ति और श्रद्धा के बल-बूते पर उस अस्थायी बाधा से निकल कर अधिक महान् उद्घाटन और नयी प्रगति के प्रति खुल सकता है।
सन्दर्भ : श्रीअरविन्द अपने विषय में
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…