वास्तविक तथ्य यह है कि विश्व में जिस चीज़ में तुम्हारी दिलचस्पी है – सीधे या घुमावदार रूप में, वह तुम स्वयं हो। यही कारण है कि तुम स्वयं को इतनी तंग और घुटन भरी सीमाओं में कैद पाते हो ।
संदर्भ : माताजी का एजेंडा (भाग-१)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…