अगर तुम तकलीफ के बारे में सोचते ही रहोगे तो वह बढ़ती चली जायेगी । अगर तुम उस पर केन्द्रित हुए तो वह फूल उठेगी, उसे लगेगा कि उसका स्वागत किया जा रहा है । लेकिन अगर तुम उस पर कोई ध्यान न दो तो उसे तुम्हारे अन्दर कोई रस न रह जायेगा और वह दूर चली जायेगी ।
सबसे अच्छा उपचार यह है कि अपने बारे में अपने दोषों और अपनी कठिनाइयों के बारे में सोचना बन्द कर दो ।
आओ हम केवल उस महान् कार्य के बारे में सोचें, उस आदर्श के बारे में सोचें जिसे श्रीअरविन्द ने हमें चरितार्थ करने के लिए दिया है । उस काम के बारे में, हम उसे किस तरह करते हैं इसके बारे में ‘नहीं’ ।
मैं सहायता करूंगी ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…