भगवान् के प्रति पूर्ण आत्मदान के लिए तीन विशेष विधियां :
१. सारे गर्व को त्याग कर पूर्ण नम्रता के साथ अपने-आपको ‘उनके’ चरणों में साष्टांग प्रणत करना।
२. अपनी सत्ता को उनके सामने खोलना, नख से शिख तक अपने सारे शरीर को खोल देना जिस तरह किताब खोली जाती है, अपने केन्द्रों
को अनावृत कर देना जिससे कि उनकी सभी क्रियाएं पूर्ण सच्ची निष्कपटता में प्रकट हो जायें जो किसी चीज को छिपा नहीं रहने देती।
३. ‘उनकी’ भुजाओं में आश्रय लेना, प्रेममय और सम्पूर्ण विश्वास के साथ ‘उनमें’ विलीन हो जाना।
इन क्रियाओं के साथ-साथ ये तीन सूत्र या व्यक्ति के अनुसार इनमें से कोई एक अपनाया जा सकता है :
१. ‘तेरी इच्छा’ पूर्ण हो, मेरी नहीं।
२. जैसी ‘तेरी इच्छा’, जैसी ‘तेरी इच्छा’।
३. मैं हमेशा के लिए ‘तेरा’ हूं।
सामान्यतः जब ये क्रियाएं सच्चे तरीके से की जाती हैं तो इनके साथसाथ पूर्ण ऐक्य, अहम् का पूर्ण विलयन हो जाता है जिससे महान् आनन्द
का जन्म होता है।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
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