“असामञ्जस्य-भरे वातावरण” को पहचानना केवल उसी हद तक उपयोगी हो सकता है जिस हद तक वह हर एक के अन्दर उसे सामञ्जस्य-भरे वातावरण में बदलने की इच्छा जगाये। और यह करने के लिए पहली जरूरी चीज यह है कि हर एक अपने सीमित दृष्टिकोण से बाहर निकले ताकि दूसरों के दृष्टिकोण को समझ सके। हर एक के लिए यह ज्यादा जरूरी है कि औरों की भूल पर आग्रह करने की जगह स्वयं अपने अन्दर भूल को खोजे।
मैंने कहा था कि मैंने जिन लोगों को काम में जिम्मेदारी सौंपी है उन सबसे आशा की जाती है कि वे अपनी जिम्मेदारी के प्रति निष्ठावान् रहेंगे और “आहत होने की भावना” को न घुसने देंगे, और अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए भरसक प्रयास करेंगे।
मेरे आशीर्वाद उन सबके साथ हैं जो सच्चे और सदभावनावाले हैं।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
भगवान को अभिव्यक्त करने वाली किसी भी चीज को मान्यता देने में लोग इतने अनिच्छुक…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…
मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…
श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…