हर बार जब कोई व्यक्ति उस संकीर्ण सीमा को तोड़ता है जिसमें उसके अहं ने उसे बन्द कर रखा है, जैसे ही वह आत्म-दान के कारण खुली हवा में उठता है, वह चाहे किसी और मनुष्य के लिए हो या परिवार या देश या अपने श्रद्धा-विश्वास के लिए, उसे इस आत्म-विस्मृति के अंदर प्रेम के अद्भुत आनंद का पूर्वानुभाव प्राप्त होता है और इससे उसे ऐसा लगता है कि वह भगवान के संपर्क में आ गया है। लेकिन बहुधा यह क्षणिक संपर्क होता है, क्योंकि मनुष्यों में प्रेम तुरंत अहंकारपूर्ण निम्न गतियों में मिल जाता है जो उसे दूषित कर देती है और उसकी पवित्रता की सारी शक्ति हर लेती है।
संदर्भ : शिक्षा के ऊपर
मेरी प्यारी माँ, काश ! मैं अपनी अज्ञानी सत्ता को यह विश्वास दिला पाता कि…
तुम्हारा अवलोकन बहुत कच्चा है। ''अन्दर से'' आने वाले सुझावों और आवाजों के लिए कोई…
क्षण- भर के लिए भी यह विश्वास करने में न हिचकिचाओ कि श्रीअरविन्द नें परिवर्तन…
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…