हर बार जब कोई व्यक्ति उस संकीर्ण सीमा को तोड़ता है जिसमें उसके अहं ने उसे बन्द कर रखा है, जैसे ही वह आत्म-दान के कारण खुली हवा में उठता है, वह चाहे किसी और मनुष्य के लिए हो या परिवार या देश या अपने श्रद्धा-विश्वास के लिए, उसे इस आत्म-विस्मृति के अंदर प्रेम के अद्भुत आनंद का पूर्वानुभाव प्राप्त होता है और इससे उसे ऐसा लगता है कि वह भगवान के संपर्क में आ गया है। लेकिन बहुधा यह क्षणिक संपर्क होता है, क्योंकि मनुष्यों में प्रेम तुरंत अहंकारपूर्ण निम्न गतियों में मिल जाता है जो उसे दूषित कर देती है और उसकी पवित्रता की सारी शक्ति हर लेती है।
संदर्भ : शिक्षा के ऊपर
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…