मैं कह सकती हूँ कि देह के कोषों को अपना सहारा, अपना आधार सिर्फ़ ‘दिव्यता’ में खोजना होगा, तब तक जब तक वे यह महसूस करने में समर्थ न हो जाएँ की वे ‘दिव्यता’ की अभिव्यक्ति ही तो है । स्पष्ट है न?
संदर्भ : श्रीमाँ के एजेंडा (खण्ड -१२)
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…