भगवान के सिवा कभी किसी दूसरे मनुष्य या दूसरी वस्तु पर, वह चाहे जो हो निर्भर नहीं करना। कारण, यदि तुम किसी व्यक्ति का सहारा लेने झुकोगे तो वह सहारा टूट जाएगा। तुम इस विषय में निस्संदिग्ध हो सकते हो ।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर (१९५०-१९५१)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…