कृष्ण वैश्व भगवान् और अन्तरस्थ भगवान् दोनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हम उनसे अपनी सत्ता के अन्दर भी मिल सकते हैं और अभिव्यक्त जगत् में जो कुछ है उसमें भी। और क्या तुम जानना चाहते हो कि उन्हें हमेशा बालक के रूप में ही क्यों चित्रित किया जाता है? इसलिए कि वे निरन्तर प्रगति करते रहते हैं। जिस हद तक संसार पूर्ण होता है, उनकी लीला भी पूर्ण होती है। बीते कल की लीला आगामी कल की लीला न रहेगी। उनकी लीला तब तक अधिकाधिक सामञ्जस्यपूर्ण, सौम्य और आनन्दपूर्ण होती जायेगी, जब तक कि संसार उसे उत्तर देने और भगवान् के साथ उसका रस लेने योग्य नहीं हो जाता।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…