यह मैंने देख लिया है कि जो भगवान ने मुझे नहीं दिया है उसे उन्होने अपने प्रेम तथा ज्ञान के वश ही नहीं दिया है। यदि उस समय मैंने उसे पकड़ लिया होता तो मैंने किसी महान अमृत को एक महान विष में बदल दिया होता। फिर भी कभी कभी, जब हम हठ करते हैं तब, भगवान हमें विष पीने के लिये दे देते हैं जिसमें कि हम उससे मुंह मोड़ना सीख सकेंतथा ज्ञानपूर्वक उनके दिव्य भोग और अमृत रस का आस्वादन कर सकें ।
संदर्भ : विचारमाला और सूत्रावली
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…