“कितनी दूर मैं आ गया हूँ, और कितना रास्ता मुझे तय करना है?” – ऐसे प्रश्न बहुत उपयोगी नहीं होते। श्रीमाँ को कर्णधार बना कर प्रवाह के साथ बहो। वे तुम्हें तुम्हारें निर्धारित बन्दरगाह पर पहुंचा देगी ।
संदर्भ : श्रीअरविंद की बंगला रचनाएँ
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…