“कितनी दूर मैं आ गया हूँ, और कितना रास्ता मुझे तय करना है?” – ऐसे प्रश्न बहुत उपयोगी नहीं होते। श्रीमाँ को कर्णधार बना कर प्रवाह के साथ बहो। वे तुम्हें तुम्हारें निर्धारित बन्दरगाह पर पहुंचा देगी ।
संदर्भ : श्रीअरविंद की बंगला रचनाएँ
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…