जब माताजी के साथ चम्पकलाल ने काम करना आरम्भ किया था तब माताजी ने वार्तालाप के समय ये बातें कही थीं | बाद में चम्पकलाल ने माताजी से इसे लिखकर देने की प्रार्थना की तब माताजी ने कृपा कर यह संदेश लिखकर दिया था :
सरल बनो |
प्रसन्न रहो |
शांत रहो |
अपना कार्य जितना हो सके उतनी पूर्णता के साथ करो |
अपने को सदैव मेरी और खुला रखो , तुमसे इसी सब की आशा की जाती है |
सन्दर्भ: चम्पकलाल की वाणी
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…
देशभक्ति की भावनाएँ हमारे योग की विरोधी बिलकुल नहीं है, बल्कि अपनी मातृभूमि की शक्ति…