प्रत्येक कलाकार के अन्दर उसके प्राणिक-भौतिक भागों में सार्वजनिक व्यक्ति की कोई चीज़ होती है जो उसे श्रोता के प्रोत्साहन, सामाजिक प्रशंसा, गर्व की तृप्ति, सम्मान, यश के लिए लालायित बनाती है; (इसमें अपवाद विरले ही होते हैं । ) यदि तुम योगी बनना चाहते हो तो इसे पूरी तरह समाप्त करना होगा, – तुम्हारी कला को तुम्हारे अहं की नहीं, किसी व्यक्ति या किसी चीज़ की नहीं, बल्कि केवल भगवान की ही सेवा बनना होगा।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…