जब कोई प्रगति की जाती है तो वह प्रायः विरोधी शक्तियों को सक्रिय होनेके लिये उकसा देती है, वे शक्तियां उसके प्रभावों को शक्तिभर कम करना चाहती हैं। जब तुम्हें इस प्रकार का कोई निर्णायक अनुभव हो जाय तो तुम्हें अपनी शक्तियों को इधर-उधर बिखेर देने और चेतनाको किसी भी तरहसे बहिर्मुख बनाने से बचते हुए अपने अन्दर केन्द्रित रहना चाहिये और प्रगति को आत्मसात् कर लेना चाहिये।
सन्दर्भ : श्रीअरविन्द के पत्र (भाग-३)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…