नहीं, आश्रम में रहना पर्याप्त नहीं है – व्यक्ति को श्रीमाँ के प्रति उद्घाटित होना होगा और उस कीचड को अपने ऊपर से साफ करना होगा जिसमें वह जगत के अंदर रहते हुए खेल रहा था ।
संदर्भ : माताजी के विषय में
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…