श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ
बाहरी दिखावों से निर्णय न करो और लोग जो कहते हैं उस पर विश्वास न करो, क्योंकि ये दोनों चीजें भटकाने वाली हैं। लेकिन अगर तुम्हें जाना जरूरी मालूम होता है, तो निस्संदेह तुम जा सकते हो और बाहरी दृष्टिकोण से शायद यह अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण भी होगा।
और फिर, यहां रहना आसान नहीं है। आश्रम में कोई बाहरी अनुशासन या दिखायी देने वाली परीक्षा नहीं है। लेकिन आन्तरिक परीक्षा निरन्तर और कठोर होती है। यहां रहने लायक होने के लिए तुम्हें अपनी अभीप्सा में बहुत सच्चा होना चाहिये ताकि तुम समस्त अहंकार को पार कर सको और मिथ्याभिमान को जीत सको।
पूर्ण समर्पण की बाहर से मांग नहीं की जाती लेकिन जो लोग यहां बने रहना चाहते हैं उनके लिए यह अनिवार्य है और बहुत-सी चीजें समर्पण की सच्चाई की परीक्षा करने के लिए आती हैं। फिर भी, जो उनके लिए अभीप्सा करते हैं उनके लिए ‘कृपा’ और सहायता हमेशा मौजूद रहती हैं और उन्हें श्रद्धा-विश्वास के साथ ग्रहण किया जाये तो उनकी शक्ति असीम होती है।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…