श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

आश्रम में रहना आसन नहीं

बाहरी दिखावों से निर्णय न करो और लोग जो कहते हैं उस पर विश्वास न करो, क्योंकि ये दोनों चीजें भटकाने वाली हैं। लेकिन अगर तुम्हें जाना जरूरी मालूम होता है, तो निस्संदेह तुम जा सकते हो और बाहरी दृष्टिकोण से शायद यह अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण भी होगा।

और फिर, यहां रहना आसान नहीं है। आश्रम में कोई बाहरी अनुशासन या दिखायी देने वाली परीक्षा नहीं है। लेकिन आन्तरिक परीक्षा निरन्तर और कठोर होती है। यहां रहने लायक होने के लिए तुम्हें अपनी अभीप्सा में बहुत सच्चा होना चाहिये ताकि तुम समस्त अहंकार को पार कर सको और मिथ्याभिमान को जीत सको।

पूर्ण समर्पण की बाहर से मांग नहीं की जाती लेकिन जो लोग यहां बने रहना चाहते हैं उनके लिए यह अनिवार्य है और बहुत-सी चीजें समर्पण की सच्चाई की परीक्षा करने के लिए आती हैं। फिर भी, जो उनके लिए अभीप्सा करते हैं उनके लिए ‘कृपा’ और सहायता हमेशा मौजूद रहती हैं और उन्हें श्रद्धा-विश्वास के साथ ग्रहण किया जाये तो उनकी शक्ति असीम होती है।

सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)

 

शेयर कीजिये

नए आलेख

उदार विचार

मैंने अभी कहा था कि हम अपने बारे में बड़े उदार विचार रखते हैं और…

% दिन पहले

शुद्धि मुक्ति की शर्त है

शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…

% दिन पहले

श्रीअरविंद का प्रकाश

मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…

% दिन पहले

भक्तिमार्ग का प्रथम पग

...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…

% दिन पहले

क्या होगा

एक परम चेतना है जो अभिव्यक्ति पर शासन करती हैं। निश्चय ही उसकी बुद्धि हमारी…

% दिन पहले

प्रगति का अंदाज़

मधुर मां, हम यह कैसे जान सकते हैं कि हम व्यक्तिगत और सामुदायिक रूप में…

% दिन पहले