माँ, श्रीअरविन्द ने हमेशा कहा है कि आप, आप हमारे अन्दर विराजमान रहती है।
हाँ, यह सच है, एकदम सही है।
मैं, वहाँ शाश्वत लौ में ‘उपस्थिति’ के रूप में हूँ, वह ‘शक्ति’ हैं जो क्रिया का सूत्रपात तथा सञ्चालन करती है। वह ‘शान्ति’ हूँ जो सभी चीजों को मधुरता तथा अचञ्चलता प्रदान करती है, वह ‘परमोल्लास’ है जो उफनता है, उदात्त बनाता है, वह ‘प्रकाश’ हूँ जो पवित्र तथा शुद्ध करता है, और हूँ वह ‘स्पन्दन’ जो समर्थन करता, अनुमति देता है।
श्रीअरविन्द ऐसी ‘सत्ता’ के रूप में उपस्थित हैं जो सबको धारण किये हुए है और मैं वहाँ ‘पथ-प्रदर्शन’ के रूप में विद्यमान हूँ। वस्तुतः, दृश्यमान रूप में हम दो हैं, लेकिन वास्तव में अभिन्न हैं। एक है साक्षी अथवा द्रष्टा, तथा दूसरी है शक्ति।
जब तक तुम इस सत्य को उपलब्ध नहीं कर लेते, तुम कुछ नहीं समझ सकते। बहरहाल, उनके प्रति तुम्हारी कृतज्ञता को भली-भाँति स्वीकार कर लिया गया है। उन्होंने तुम्हारी प्रार्थना सुन ली है और मैं तुम्हें अपने आशीर्वाद प्रदान कर रही हूँ।
हाँ, मेरे बच्चे, जिसने श्रीअरविन्द तथा मुझे सच्चे अर्थों में पहचान लिया है-वस्तुतः यह एक ही चीज़ है, हमारी समान पहचान है-उसके लिए सभी बाधाएँ, सभी मुसीबतें, सभी जाल, ‘सत्य’ के पथ पर आने वाली सभी रुकावटें बह जाती हैं, उन्हें हमेशा के लिए उसके रास्ते से हटा दिया जाता है-न केवल इस जन्म में, बल्कि मृत्यु के बाद तथा आने वाले सभी जन्मों के लिए-यानी शाश्वत काल के लिए सभी विघ्न-बाधाएँ उसके पथ से बीन ली जाती हैं।
हाँ, उसके लिए, ‘प्रभु’ सर्वसमर्थ हैं। उसे बस दोहराते जाना है : “माँ -श्रीअरविन्द, माँ-श्रीअरविन्द”… बस यही पर्याप्त है। (ध्यान)
सन्दर्भ : ‘परम’ (मोना सरकार)
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…