यह निश्चित रूप से जानो कि मनुष्य जो कर सकता है उसमें आत्महत्या सबसे अधिक मूर्खतापूर्ण क्रिया है, क्योंकि शरीर के अन्त का अर्थ चेतना का अन्त नहीं होता और जो चीज़ तुम्हें जीते जी तंग कर रही थी वही मरने पर तंग करती रहती है। जीते जी तुम मन की दिशा बदल सकते हो पर मरने पर वह सम्भावना नहीं रहती ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
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