तुम्हारा अवलोकन बहुत कच्चा है। ”अन्दर से” आने वाले सुझावों और आवाजों के लिए कोई नियम नहीं बनाया जा सकता । तुम्हारे ”अन्दर” का मतलब कुछ भी हो सकता है । तुम्हें अपने अवलोकन को प्रशिक्षित करना चाहिये और जिन स्तोत्रों से सुझाव आते हैं उन्हें अलग-अलग पहचानने की कोशिश करनी चाहिये । आवाज या सुझाव तुम्हारी अपनी अवचेतना से आ सकते हैं या किसी ज़्यादा ऊंची चीज से । अगर तुम जान सको कि यह कहां से आ रहा है तब तुम फैसला कर सकते हो कि उसका अनुसरण किया जाये या नहीं ।
संदर्भ : माताजी के वचन ( भाग – २ )
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…