अवनति में कोई अनोखी बात नहीं। योगाभ्यास शुरू करने से बहुत पहले मेरे बारे में भी यह प्रसिद्ध था कि इन्हें क्रोध विरले ही आता है। योग की एक विशेष अवस्था में वह मेरे अन्दर ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ा और उसे निकालना में मुझे लंबा समय लगा। मैं एक बीती अवस्था की बात कर रहा था। अवचेतन से उसके उठने के विषय में मुझे पता नहीं, अवश्य ही वह विश्व-प्रकृति से आया होगा।
संदर्भ : श्रीअरविंद अपने विषय में
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…