अवनति में कोई अनोखी बात नहीं। योगाभ्यास शुरू करने से बहुत पहले मेरे बारे में भी यह प्रसिद्ध था कि इन्हें क्रोध विरले ही आता है। योग की एक विशेष अवस्था में वह मेरे अन्दर ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ा और उसे निकालना में मुझे लंबा समय लगा। मैं एक बीती अवस्था की बात कर रहा था। अवचेतन से उसके उठने के विषय में मुझे पता नहीं, अवश्य ही वह विश्व-प्रकृति से आया होगा।
संदर्भ : श्रीअरविंद अपने विषय में
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…