जो लोग अपनी आजीविका के लिए तुम पर निर्भर हैं उनके साथ तुम्हें बहुत शिष्ट होना चाहिये। अगर तुम उनके साथ बुरा व्यवहार करो, तो उन्हें बहुत खटकता है परंतु नौकरी छूट जाने के भय से वे तुम्हारे मुंह पर जवाब नहीं दे सकते।
अपने से बड़ों के साथ रूखे होने में कुछ शान हो सकती है, परंतु जो तुम पर आश्रित हैं, उनके साथ तो बहुत शिष्ट होने में ही सच्चा बड़प्पन है।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
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आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…
देशभक्ति की भावनाएँ हमारे योग की विरोधी बिलकुल नहीं है, बल्कि अपनी मातृभूमि की शक्ति…