हर एक को अपनी निश्चिति अपने ही अन्दर खोजनी चाहिये, सब चीजों के बावजूद इसे बनाये, संभाले रखना चाहिये और किसी भी कीमत पर, लक्ष्य तक बढ़ते जाना चाहिये। ‘विजय’ अधिक-से-अधिक सहिष्णु की होती है ।
सब विरोधों के होते हुए अपनी सहन-शक्ति बनाये रखने के लिए हमारे सहारे का आधार अचल-अटल होना चाहिये और एक ही सहारा अचल-अटल है, वह है ‘सत’ का, ‘परम सत्य’ का सहारा ।
किसी और को खोजना बेकार है। केवल यही है जो कभी साथ नहीं छोड़ता ।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५६
अपने अन्दर माताजी के साथ रहना, उनकी चेतना के साथ संपर्क में रहना और दूसरों…
... मैं सभी वस्तुओं में प्रवेश करती हूँ, प्रत्येक परमाणु के हृदय में निवास करते…
यदि तुम घोर परिश्रम न करो तो तुम्हें ऊर्जा नहीं मिलती, क्योंकि उस स्थिति में…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…