जब हमारे अंदर का ज्ञान नया होता है तब वह अजेय होता है; जब वह पुराना हो जाता है तब वह अपना गुण खो देता है । ऐसा इस कारण होता है कि भगवान सर्वदा आगे की ओर बढ़ते रहते है।
संदर्भ : विचारमाला और सूत्रावली
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…