श्रीमातृवाणी खण्ड १६

मृत्यु की अनिवार्यता पर विजय

जब शरीर बढ़ती हुई पूर्णता की ओर सतत प्रगति करने की कला सीख ले तो हम मृत्यु की अनिवार्यता पर…

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भविष्य को सौंपना

कृपया बतलाइये कि मैं अपने अतीत से कैसे पिण्ड छुड़ा सकता हूँ, जो इतने जोर से चिपका रहता है । …

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अहंकार

हर एक के अंदर अपने अहंकार होते हैं और सभी अहंकार एक-दूसरे से टकराते रहते है । आदमी स्वतंत्र सत्ता…

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विभक्त सत्ता

मैं आपसे फिर से पूछता हूँ माँ, वह कौन-सी चीज़ है जो मेरी सत्ता को विभक्त करती है ? संघर्ष…

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मुझसे क्या चाहते हैं ?

भगवान मुझसे क्या चाहते हैं ? वे चाहते हैं कि पहले तुम अपने-आपको पा लो, कि तुम अपनी सच्ची सत्ता,…

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चिंता न करो

मैं रो रहा हूँ । न जाने क्यों । मन करें तो रो लो। परंतु चिंता न करो। वर्षा के…

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श्रीअरविंद के योग का आरंभ

मधुर माँ, हम निश्चय के साथ कब कह सकते है कि हमने श्रीअरविंद का योग शुरू कर दिया है ?…

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बुरें विचारों का उफान

मधुर माँ, समय-समय पर बुरे विचारों का उफान आ जाता है; मेरा मन आवेशों का दलदल बन जाता है जिसमें…

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शांत रहो

शांत रहो और देखो। परिणाम निश्चित है - उपाय और समय निश्चित नहीं है । आशीर्वाद | संदर्भ : श्रीमातृवाणी…

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प्रेम

प्रेम सबके साथ है, प्रत्येक की प्रगति के लिये समान रूप से कार्य कर रहा है-लेकिन विजय उन्ही में पाता…

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