भगवान की सेवा

भगवान की सेवा

भगवान की सेवा से बढ़ कर और कोई हर्ष नहीं हो सकता। संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)

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ईर्ष्या और प्रमाद

मधुर मां, हम ईर्ष्या और प्रमाद से कैसे पिण्ड छुड़ा सकते या उन्हें ठीक कर सकते हैं ? स्वार्थ तुम्हें…

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भगवान के प्रति उत्सर्ग

मधुर माँ,     आपने बहुत बार कहा है कि हमारे क्रिया-कलाप भगवान के प्रति उत्सर्ग होने चाहियें । इसका…

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