भगवान ही अधिपति और प्रभु हैं – आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शांत साक्षी बनी रहती है और सभी वस्तुओं का समर्थन करती है – यह निश्चल पक्ष है। एक गयात्मक पक्ष भी है जिसके द्वारा भगवान कार्य करते हैं- उनके पीछे श्रीमाँ हैं। तुम्हें इसे अनदेखा नहीं करना चाहिये कि श्रीमाँ के माध्यम से ही सभी वस्तुएं उपलब्ध होती हैं।
संदर्भ : श्रीमाँ के विषय में
अपने अन्दर माताजी के साथ रहना, उनकी चेतना के साथ संपर्क में रहना और दूसरों…
... मैं सभी वस्तुओं में प्रवेश करती हूँ, प्रत्येक परमाणु के हृदय में निवास करते…
यदि तुम घोर परिश्रम न करो तो तुम्हें ऊर्जा नहीं मिलती, क्योंकि उस स्थिति में…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…