हमारा भूतकाल चाहे जो भी रहा हो, हमने चाहे जो भी भूलें की हों, हम चाहे जितने अज्ञान में क्यों न रह चुके हों, हम अपनी गंभीरतम सत्ता में परम पवित्रता को धारण किये हुए हैं जो एक भव्य सिद्धि के रूप में रूपान्तरित हो सकती है।
बस, प्रधान बात है उसी के विषय में सोचना, उसी के ऊपर एकाग्र होना और अपनी समस्त कठिनाइयों और विघ्न-बाधाओं के विषय में भी संलग्न न रहना।
जो कुछ तुम बनना चाहते हो, बस, उसी पर पूर्ण रूप से एकाग्र होओ और जो कुछ तुम नहीं होना चाहते उसे यथासम्भव समग्र रूप में भूल जाओ।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९२९-१९३१
अगर तुम्हारी श्रद्धा दिनादिन दृढ़तर होती जा रही है तो निस्सन्देह तुम अपनी साधना में…
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…