
हमारी वास्तविक सत्ता तथा इसके यन्त्र
मनुष्य अपनी वास्तविक प्रकृति में… एक आत्मा है जो मन, प्राण तथा शरीर का उपयोग व्यक्तिगत तथा सामुदायिक अनुभव के लिए और विश्व में आत्माभिव्यक्ति...
मनुष्य अपनी वास्तविक प्रकृति में… एक आत्मा है जो मन, प्राण तथा शरीर का उपयोग व्यक्तिगत तथा सामुदायिक अनुभव के लिए और विश्व में आत्माभिव्यक्ति...
हमारी प्रकृति भ्रांति तथा क्रिया की बेचैन अनिवार्यता के आधार पर कार्य करती है, भगवान अथाह निश्चलता में मुक्त रूप से कार्य करते हैं। यदि...
ज्ञान है एक ऐसी एकाग्रता जिसकी परिणति एक जीवंत सिद्धि तथा हमारे अंदर तथा सबमें एकमात्र सत्ता की उपस्थिति – जिसके प्रति हम सचेतन हैं...
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह सीमित करने वाली, बंधनकारी, तमाच्छादित करने वाली अपूर्णताओं तथा भ्रांतियों...
…पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो जाती है वही से शुरू होती है सच्ची भक्ति ;...
जब मानसिकता पीछे छूट जाती है तथा निष्क्रिय नीरवता में दूर चली जाती है, केवल तभी अतिमानसिक विज्ञान का पूर्ण उद्घाटन और उसकी प्रभुत्व-सम्पन्न तथा...
हमारी सत्ता तथा समस्त सत्ता का भागवत सत्य के साथ ऐक्य ही योग का मौलिक उद्देश्य है। मन में इस बात का ध्यान रखना आवश्यक...
… यदि वे (मानसिक तथा प्राणिक) सत्ताएँ सदा सक्रिय रहती हैं और तुम सदा उनकी गतिविधियों के साथ तदात्म रहते हो तब पर्दा सदा बना...
स्वाभाविक है कि महानतर अनुभूतियाँ होने पर सत्ता उल्लासित हो उठती है, साथ-ही-साथ उसमें अद्भुतता तथा चमत्कार का भाव भी आ सकता है, लेकिन उल्लास...
पूर्णयोग के साधक को यह अवश्य स्मरण रखना चाहिये कि कोई भी लिखित शास्त्र नित्य ज्ञान के केवल कुछ एक अंशों को ही प्रकट कर...