
योग के दो महान् चरणों में से एक
श्रीमाँ श्रीअरविन्द’ की शिष्या नहीं हैं। उन्हें मेरे समान ही सिद्धि और अनुभूति प्राप्त थी। श्रीमाँ की साधना छोटी उम्र से ही आरम्भ हो गयी...
श्रीमाँ श्रीअरविन्द’ की शिष्या नहीं हैं। उन्हें मेरे समान ही सिद्धि और अनुभूति प्राप्त थी। श्रीमाँ की साधना छोटी उम्र से ही आरम्भ हो गयी...
तुम्हारें लिए यह बिल्कुल संभव है कि तुम घर पर और अपने काम के बीच रह कर साधना करते रहो – बहुत से लोग ऐसा...
यदि चैत्य पुरुष की प्रकृति जाग्रत हो जाए, अपने पीछे विद्यमान माताजी की चेतना और शक्ति के द्वारा तुम्हारा पथ-प्रदर्शन करे तथा तुम्हारे अंदर कार्य...
इसपर विचार मत करो कि लोग तुमसे सहमत हैं या असहमत अथवा तुम अच्छे हो या बुरे, वरन यह विचार करो कि “माताजी मुझसे प्रेम...
हम चाहें श्रीअरविंद को लिखें या श्रीमाँ को, क्या यह एक ही बात है ? कुछ लोग कहते हैं कि दोनों एक ही हैं, इसलिए...
प्रायः ही श्रीअरविंद कहते हैं कि व्यक्ति को श्रीमाँ की शक्ति को शासन करने देना चाहिये । क्या इसका यह अर्थ है कि दोनों की...
जब कोई आदमी माताजी के संरक्षण में योग करना आरंभ करता है तब क्या वह पूर्ण रूप से उनके द्वारा ग्रहण नहीं कर लिया जाता?...
तुम माँ के बच्चे हो और माँ का अपने बच्चों के प्रति प्रेम असीम होता है, और वे उनके स्वभाव के दोषों को बड़े धीरज...
माताजी को स्मरण करो और, यद्यपि शरीर से तुम उनसे बहुत दूर हो, उनको अपने साथ अनुभव करने का प्रयास करो और तुम्हारी आंतर सत्ता...
क्या श्रीमां के अन्तर्दर्शन को अथवा स्वप्न या जागृत अवस्था में उन्हें देखने को साक्षात्कार कहा जा सकता है? वह साक्षात्कार न होकर अनुभव होगा।...